शिकारी प्रियांशी जैन बुक पीडीएफ | Shikari Priyanshi Jain PDF Hindi Book

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शाम से बारिश हो रही थी और आसमान में अंधेरा छा रहा था। मैं अपनी दोनों बेटियों के साथ खाना बनाने की तैयारी कर रही थी। तभी फोन की घंटी बजी। मैं किचन से निकलकर अपने रूम में गई और फोन उठाया। दूसरी तरफ से किसी औरत की आवाज़ आई, “हेलो वंदना कैसी हो? मैं बोल रही हूँ उर्मिला।” यह मेरी एक पुरानी सहेली की आवाज़ थी। बरसों बाद उसकी आवाज़ सुनी, तो कुछ बीते हुए पलों की यादें दिमाग़ में घूम गईं।

उर्मिला: हेलो वंदना, तुम हो ना लाइन पर?

मैं: हां, हां बोल उर्मिला। मैं ठीक हूँ। तुम अपनी बताओ?

उर्मिला: मैं भी ठीक हूँ। और तुम्हारी बेटियाँ कैसी हैं?

मैं: वो दोनों भी ठीक हैं। खाना खा रही हैं।

उर्मिला: अच्छा वंदना, सुन, मुझे तुझसे कुछ काम था।

मैं: हां बोल ना, क्या काम था?

उर्मिला: यार, कैसे बोलूं, समझ में नहीं आ रहा… दरअसल बात ही कुछ ऐसी है।

मैं: तू ठीक है तो है। बोल ना, क्या बात है?

उर्मिला: वो… वो… मुझे क्या तुम मुझे एक रात के लिए अपने घर पर रुकने दे सकती हो?

मैं: हां, क्यों नहीं, इसमें पूछने की क्या बात है। कब आ रही है तू?

उर्मिला: यार, आ नहीं रही। आ चुकी हूँ। पर पहले मेरी पूरी बात सुन ले। वो मेरे साथ कोई और भी है।

मैं: हां तो क्या हुआ, आ जा।

उर्मिला: यार, तू मेरी बात को समझ नहीं रही। वो मेरे साथ एक लड़का है।

मैं: क्या लड़का! तेरा बेटा है क्या?

उर्मिला: नहीं यार! अब मैं तुम्हें कैसे बताऊँ… वो… वो समझ ना।

मैं: तू ये पहेलियाँ क्यों बुझा रही है। साफ-साफ बता ना क्या बात है।

उर्मिला: यार, वो छोड़, तू ये बता कि तुम मुझे एक रात के लिए अपने घर पर एक रूम दे सकती हो या नहीं… वो मेरे साथ मतलब समझ ना।

कहाँ हम जैसे ग़रीब और मजबूर लोग, जो पैसे-पैसे के लिए तरसते हैं और कहाँ वो उर्मिला जो अपने आशिक के साथ एक रात बिताने के लिए 5000 रुपये उड़ा रही है। पर फिर मुझे अहसास हुआ कि ये मैंने क्या कर दिया। मेरी दोनों बेटियाँ अब बारहवीं क्लास पास कर चुकी थीं और आगे पैसे ना होने के कारण मैं उन्हें आगे नहीं पढ़ा पा रही थी। उर्मिला मुझसे उम्र में 4-5 साल कम थी। मैं कैसे इतने बड़े लड़के को उसका बेटा बता सकती हूँ। फिर सोचा, चलो जो होगा देखा जाएगा।

मैं बाहर आई और किचन में चली गई। अक्टूबर का महीना था और बारिश से हवा भी ठंडी हो गई थी। मतलब साफ था कि अब सर्दियाँ आने को हैं। जब मैं किचन में पहुंची, तो मेरी बड़ी बेटी प्राची ने पूछा, “माँ, किसका फोन था?” मैंने अपने आप को संभालते हुए कहा, “वो मेरी एक सहेली का फोन था। तुम नहीं जानती उनको। वो किसी काम से अपने बेटे के साथ यहाँ आई थी और टाइम से वापस नहीं जा पाई, तो आज रात वो यहाँ हमारे घर पर रुकेगी। तुम थोड़ा सा खाना ज़्यादा बना लो।”

प्राजक्ता: माँ, ठीक है। पर घर पर दूध नहीं है। उनको चाय तो पिलानी है ना।

शिकारी प्रियांशी जैन ( Shikari Priyanshi Jain Pustak Pdf ) के बारे में अधिक जानकारी:-

Name of Bookशिकारी प्रियांशी जैन बुक | Shikari Priyanshi Jain PDF Hindi Book
Name of AuthorPriyanshi Jain
Language of BookHindi
Total pages in Ebook)109
Size of Book)2 MB
CategoryAdult Books
Source/Creditsarchive.org

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