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अंधकार अपना डेरा जमा चुका था. रात अपनी मंथर गति से बीती जा रही थी. चारो और सन्नाटा पसरा हुआ था. हां कभी कभी सियारों के रोने और कुत्तों के भोकने की आवाज़ों से वातावरण में बिसरा सन्नाटा क्षण भर के लिए भंग हुआ जाता था.
इस वक़्त रात के १० बजे थे. किशनगढ़ के निवासी अपने अपने घरों में कुछ तो चादर ताने सो चुके थे कुछ सोने का प्रयत्न कर रहे थे. उर्मिला अपने घर के आँगन की चारपाई पर अपने पति गोरप्पा के साथ लेटी हुई थी. उसकी आँखों से नींद गायब थी. वह एक और करवट लिए हुए थी.
उसकी नज़रें उसके घर से थोड़े से फ़ासले पर स्थित उस भव्य शीश महल पर टिकी हुई थी जिसे ठाकुर रामप्रताप सिंह ने अपनी धर्मपत्नी शारदा देवी के मूह दिखाई के तौर पर बनवाया था. ठीक उसी तरह जैसे शाहजहाँ ने मुमताज़ के लिए ताजमहल बनवाया था.
यहाँ फर्क सिर्फ इतना था कि ठाकुर साहब ने वे शीश महल अपनी पत्नी के जीवंत काल ही में बनवाया था. ठाकुर साहब शारदा देवी से बहुत प्रेम करते थे. शादी की मूह दिखाई के दिन ही ठाकुर साहब ने शारदा देवी को ये वचन दिया था कि वे उनके लिए एक ऐसी हवेली का निर्माण करेंगे जिसे लोग युगों युगों तक याद रखेंगे और उन्होंने ठीक ही कहा था.
शादी के साल डेढ़ साल के भीतर ही ठाकुर साहब ने अपना वादा पूरा किया, और ये हवेली बतौर मूह दिखाई शारदा देवी को भेंट की. जब ये हवेली बनकर तैयार हुई तो देखने वालों की आँखें चौंधिया गयी, जिसकी भी नज़र हवेली पर पड़ी शारदा देवी की किस्मत पर रश्क़ कर उठा उर्मिला रोज ही हवेली को देखती और ठाकुर के दिल में शारदा देवी के लिए बसे उस प्यार का अनुमान लगाती.
अभी भी उसकी नज़रें हवेली पर ही टिकी हुई थी. रात में भी यह हवेली अपनी चमक बिखेरने में कामयाब थी. उसकी बाहरी रोशनी से हवेली की दीवारे झिलमिला रही थी. तथा हवेली के अंदर से छन कर निकलती रोशनी हवेली को इंद्रधनुषी रंग प्रदान कर रही थी.
शिश महल प्रियांशी जैन ( Sheesh Mahal Priyanshi Jain Pustak Pdf ) के बारे में अधिक जानकारी:-
Name of Book | शिश महल प्रियांशी जैन बुक | Sheesh Mahal Priyanshi Jain PDF |
Name of Author | Priyanshi Jain |
Language of Book | Hindi |
Total pages in Ebook) | 295 |
Size of Book) | 3 MB |
Category | Adult Books |
Source/Credits | archive.org |
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