Rudri Path PDF | रुद्रि पाठ PDF

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रुद्रि पाठ PDF: महिमा, महत्व और लाभ

वेदः शिवः शिवो वेदः – यह बताता है कि वेद और शिव एक ही हैं। भारतीय संस्कृति में वेदों का अत्यधिक महत्व है और शिव को वेदस्वरूप माना गया है। शिवजी का पूजन, अभिषेक और यज्ञ सभी वेद-मंत्रों से किया जाता है, जिसमें रुद्रि पाठ का विशेष स्थान है। इस लेख में हम जानेंगे कि Rudri Path PDF क्या है, इसका महत्व क्या है, और इसे कैसे किया जाता है। साथ ही, रुद्रि पाठ PDF डाउनलोड करने का विकल्प भी दिया जाएगा।

रुद्रि पाठ PDF के लाभ और महत्व

रुद्रि पाठ, जिसे रुद्राष्टाध्यायी भी कहा जाता है, शुक्ल यजुर्वेद का एक महत्वपूर्ण भाग है। इसे शिव के भक्तों के लिए सबसे पवित्र पाठ माना जाता है। इसमें भगवान रुद्र की स्तुति की गई है, और इसे जपने से संकट, दुःख और रोगों से मुक्ति मिलती है। रुद्रि पाठ PDF के नियमित पाठ से शांति, समृद्धि, और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

  • धन-धान्य की वृद्धि: रुद्रि पाठ करने से आर्थिक लाभ और समृद्धि प्राप्त होती है।
  • मानसिक शांति: यह पाठ मानसिक तनाव को दूर करता है और आत्मिक शांति प्रदान करता है।
  • मोक्ष की प्राप्ति: रुद्र पाठ के द्वारा व्यक्ति मोक्ष प्राप्ति की ओर अग्रसर होता है।

रुद्रि पाठ कैसे करें?

रुद्रि पाठ को करने के लिए आपको एक शांत वातावरण की आवश्यकता होती है। इस पाठ को विशेष रूप से सोमवार को किया जाता है, लेकिन आप इसे किसी भी दिन कर सकते हैं। रुद्र पाठ करते समय मन को पूर्णतः शिवजी पर केंद्रित करना चाहिए और कोई भी विकार न आने दें।

  1. पाठ शुरू करने से पहले शिवजी का ध्यान करें।
  2. रुद्रि पाठ PDF खोलें और मंत्रों का जप करें।
  3. अभिषेक के समय शिवलिंग पर जल या दूध अर्पण करें।

रुद्रि पाठ के फायदे:

  • संकट से मुक्ति: रुद्र पाठ करने से जीवन में आने वाली कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है।
  • स्वास्थ्य में सुधार: यह पाठ शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार लाता है।
  • आध्यात्मिक उन्नति: इससे आत्मिक उन्नति और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।

रुद्रपाठ की महिमा | Glory of Rudrapath

आशुतोष भगवान् सदाशिव की उपासना में रुद्राष्टाध्यायी का विशेष माहात्म्य है। शिवपुराण में सनकादि ऋषियों के प्रश्न करने पर स्वयं शिवजी ने रुद्राष्टाध्यायी के मंत्रों द्वारा अभिषेक का माहात्म्य बतलाते हुए कहा है कि मन, कर्म तथा वाणी से परम पवित्र होकर और सभी प्रकार की आसक्तियों से रहित होकर भगवान् शूलपाणि की प्रसन्नता के लिए रुद्राभिषेक करना चाहिए। इससे भगवान् शिव की कृपा से सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है और अंत में परम गति की प्राप्ति होती है। रुद्राष्टाध्यायी द्वारा रुद्राभिषेक से मनुष्यों की कुल परम्परा को भी आनंद की प्राप्ति होती है:

“मनसा कर्मणा वाचा शुचिः संगविवर्जितः।
कुर्याद् रुद्राभिषेकं च प्रीतये शूलपाणिनः॥
सर्वान् कामानवाप्नोति लभते परमां गतिम्।
नन्दते च कुलं पुंसां श्रीमच्छम्भुप्रसादतः॥”

वायुपुराण में बताया गया है कि रुद्राष्टाध्यायी के नमक (पञ्चम अध्याय) और चमक (अष्टम अध्याय) तथा पुरुषसूक्त का प्रतिदिन तीन बार जप करने से मनुष्य ब्रह्मलोक में प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। जो नमक, चमक, होतृमंत्रों और पुरुषसूक्त का निरंतर जप करता है, वह महादेवजी में उसी प्रकार प्रवेश करता है, जैसे घर का स्वामी अपने घर में प्रवेश करता है। जो मनुष्य अपने शरीर में भस्म लगाकर, भस्म में शयनकर और जितेन्द्रिय होकर रुद्राध्याय का पाठ करता है, वह परा मुक्तिको प्राप्त करता है। जो रोगी और पापी जितेन्द्रिय होकर रुद्राध्याय का पाठ करता है, वह रोग और पाप से मुक्त होकर अद्वितीय सुख प्राप्त करता है:

“नमकं चमकं चैव पौरुषं सूक्तमेव च।
नित्यं त्रयं प्रयुञ्जानो ब्रह्मलोके महीयते॥
नमकं चमकं होतॄन् पुरुषसूक्तं भस्मदिग्धशरीरस्तु भस्मशायी।
रोगवान् पापवांश्चैव रुद्रं जप्त्वा जपेत् सदा।
प्रविशेत् स महादेवं गृहं जितेन्द्रियः।
सततं रुद्रजाप्योऽसौ परां मुक्तिमवाप्स्यति॥
जितेन्द्रियः। रोगात् पापाद्विनिर्मुक्तो ह्यतुलं गृहपतिर्यथा॥
सुखमश्नुते॥”

शतरुद्रियपाठ

शतरुद्रिय रुद्राष्टाध्यायी का मुख्य भाग है। शतरुद्रिय का माहात्म्य रुद्राष्टाध्यायी का ही माहात्म्य है। मुख्य रूप से रुद्राष्टाध्यायी का पञ्चम अध्याय शतरुद्रिय कहलाता है। इसमें भगवान् रुद्र के शताधिक नामों द्वारा उन्हें नमस्कार किया गया है:

“शतं रुद्रा देवता अस्येति शतरुद्रीयमुच्यते”
(भट्टभास्कर का उपोद्घात भाष्य)

शतरुद्रिय का पाठ अथवा जप समस्त वेदों के पारायण के तुल्य माना गया है। शतरुद्रिय को रुद्राध्याय भी कहा गया है। भगवान् वेदव्यासजी ने अर्जुन को इसकी महिमा बताते हुए कहा है:

“सर्वार्थसाधनं पुण्यं धन्यं यशस्यमायुष्यं पुण्यं वेदैश्च सम्मितम्।
सर्वकिल्विषनाशनम्। सर्वपापप्रशमनं सर्वदुःखभयापहम्॥
पठन् वै शतरुद्रीयं शृण्वंश्च सततोत्थितः॥
भक्तो विश्वेश्वरं देवं मानुषेषु च यः सदा।
वरान् कामान् स लभते प्रसन्ने त्र्यम्बके नरः॥”

(महाभारत, द्रोणपर्व २०२।१४८-१४९, १५१-१५२)

अर्थात्, वेदसम्मत यह शतरुद्रिय परम पवित्र, धन, यश और आयु की वृद्धि करने वाला है। इसके पाठ से सभी मनोरथ सिद्ध होते हैं। यह समस्त पापों का नाश करने वाला और समस्त दुःखों तथा भय को हरने वाला है। जो निरंतर शतरुद्रिय का पाठ करता और सुनता है, वह भगवान् त्रिलोचन को प्रसन्न कर समस्त उत्तम कामनाओं की प्राप्ति करता है। अथर्ववेदीय जाबालोपनिषद में महर्षि याज्ञवल्क्यजी ने शतरुद्रिय को अमृतत्व का साधन कहा है। कृष्णयजुर्वेदीय कैवल्योपनिषद में शतरुद्रिय को कैवल्य पद प्राप्ति का साधन बताया गया है।

शतरुद्रिय की महिमा

पितामह भगवान् ब्रह्माजी ने महर्षि आश्वलायन से शतरुद्रिय की महिमा बताते हुए कहा है:

“यः शतरुद्रियमधीते सोऽग्निपूतो भवति स वायुपूतो भवति स आत्मपूतो भवति स सुरापानात् पूतो भवति स ब्रह्महत्यायाः पूतो भवति स सुवर्णस्तेयात् पूतो भवति स कृत्याकृत्यात् पूतो भवति तस्मादविमुक्तमाश्रितो भवत्यत्याश्रमी सर्वदा सकृद्वा जपेत्॥
अनेन ज्ञानमाप्नोति संसारार्णवनाशनम्।
तस्मादेवं विदित्वैनं कैवल्यं पदमश्नुते॥”

अर्थात्, जो शतरुद्रिय का पाठ करता है, वह अग्नि और वायु से शुद्ध होता है, आत्मशुद्धि प्राप्त करता है, सुरापान, ब्रह्महत्या और सुवर्णचोरी के पापों से मुक्त हो जाता है।

रुद्रि पाठ PDF कैसे डाउनलोड करें?

अगर आप रुद्रि पाठ PDF को अपने फोन या लैपटॉप पर डाउनलोड करना चाहते हैं, तो हमने एक आसान लिंक दिया है। इस PDF को डाउनलोड करके आप इसे कहीं भी और कभी भी पढ़ सकते हैं।

रुद्रि पाठ PDF डाउनलोड करें

आप नीचे दिए गए लिंक से मुफ्त में रुद्रि पाठ PDF डाउनलोड कर सकते हैं:

PDF का नामरुद्रि पाठ
पृष्ठ संख्या229 पृष्ठ
PDF का साइज12 MB
डाउनलोड लिंकडाउनलोड करें

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रुद्रि पाठ PDF डाउनलोड करें और शिवजी की कृपा प्राप्त करें

रुद्रि पाठ, शिवभक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसका नियमित पाठ करने से न केवल भौतिक सुख-समृद्धि प्राप्त होती है, बल्कि आध्यात्मिक शांति भी मिलती है। अगर आप भी शिवजी की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं, तो रुद्रि पाठ PDF को अभी डाउनलोड करें और इसका पाठ शुरू करें।

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