‘नारद पुराण हिंदी पुस्तक PDF में’ PDF Quick download link is given at the bottom of this article. You can see the PDF demo, size of the PDF, page numbers, and direct download Free PDF of ‘Narad Puran Hindi Book PDF Download’ using the download button.
नारद पुराण अट्ठारह महापुराणों में से एक है। यह एक वैष्णव पुराण है, जिसका अर्थ है कि यह भगवान विष्णु की महिमा का वर्णन करता है। नारद पुराण में धर्म, दर्शन, कर्मकांड, तीर्थयात्रा, ज्योतिष, आयुर्वेद और अन्य विषयों पर विस्तृत जानकारी दी गई है।
नारद पुराण के दो भाग हैं: पूर्व भाग और उत्तर भाग। पूर्व भाग में ब्रह्मांड की उत्पत्ति, विष्णु के विभिन्न अवतारों की कथाएँ, तीर्थयात्रा के महत्व और भगवान विष्णु की उपासना के तरीके का वर्णन किया गया है। उत्तर भाग में दर्शन, कर्मकांड, आयुर्वेद और अन्य विषयों पर विस्तृत जानकारी दी गई है।
नारद पुराण में भगवान विष्णु की महिमा का वर्णन करते हुए कहा गया है कि वह ही सृष्टि के रचयिता, पालनहार और संहारक हैं। वह सभी देवताओं और प्राणियों के स्वामी हैं। भगवान विष्णु की कृपा से ही सभी जीवों को मोक्ष प्राप्त होता है।
नारद पुराण में धर्म, दर्शन और कर्मकांड के बारे में भी बहुत सी महत्वपूर्ण बातें बताई गई हैं। इस पुराण में बताया गया है कि धर्म का पालन करने से ही मनुष्य को सुख और समृद्धि प्राप्त होती है। दर्शन हमें जीवन के सही अर्थ को समझने में मदद करता है। और कर्मकांड हमें भगवान की कृपा प्राप्त करने के लिए मार्गदर्शन करते हैं।
नारद पुराण एक प्राचीन और महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसमें धर्म, दर्शन, कर्मकांड और अन्य विषयों पर विस्तृत जानकारी दी गई है। यह पुराण सभी हिंदुओं के लिए पढ़ना और अध्ययन करना महत्वपूर्ण है।
Narad Puran Hindi Book PDF ( नारद पुराण हिंदी पुस्तक PDF इन हिंदी ) के बारे में अधिक जानकारी:-
Name of Book | Narad Puran Hindi Book PDF | नारद पुराण हिंदी पुस्तक PDF |
Name of Author | Geeta Press |
Language of Book | Hindi |
Total pages in Ebook) | 784 |
Size of Book) | 132 MB |
Category | Religious |
Source/Credits | archive.org |
पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-
श्रीनारदमहापुराण
नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्।
देवीं सरस्वतीं चैव ततो जयमुदीरयेत् ॥ १ ॥
भगवान् नारायण, नरश्रेष्ठ नर तथा सरस्वतीदेवीको नमस्कार करके भगवदीय उत्कर्षका प्रतिपादन करनेवाले इतिहास पुराणका पाठ करे।
वन्दे वृन्दावनासीनमिन्दिरानन्दमन्दिरम् ।
उपेन्द्र सान्द्रकारुण्यं परानन्दं परात्परम् ॥ २॥
जो लक्ष्मी आनन्द निकेतन भगवान् विष्णुके अवतार स्वरूप है, उस स्नेहयुक्त करुणाको निधि परात्पर परमानन्दस्वरूप पुरुषोत्तम वृन्दावनवासी श्रीकृष्णको मैं प्रणाम करता हूँ।
ब्रह्मविष्णुमहेशाख्यं यस्यांशा लोकसाधकाः ।
तमादिदेवं चिद्रूपं विशुद्धं परमं भजे ॥ ३ ॥
ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जिसके स्वरूप हैं तथा लोकपाल जिसके अंश है, उस विशुद्ध ज्ञानस्वरूप आदिदेव परमात्माकी में आराधना करता हूँ।
नैमिषारण्य नामक विशाल वनमें महात्मा शौनक आदि ब्रह्मवादी मुनि मुक्तिकी इच्छा से तपस्यायें संलग्न थे। उन्होंने इन्द्रियोंको वशमें कर लिया था उनका भोजन नियमित था। वे सच्चे संत थे और सत्यस्वरूप परमात्माकी प्राप्तिके लिये पुरुषार्थ करते थे।
आदिपुरुष सनातन भगवान् विष्णुका वे बड़ी भक्तिसे यजन-पूजन करते रहते थे। उनमें ईष्यांका नाम नहीं था। वे सम्पूर्ण धर्मो के ज्ञाता और समस्त लोकॉपर अनुग्रह करनेवाले थे। ममता और अहङ्कार उन्हें छू भी नहीं सके थे। उनका चित्त निरन्तर परमात्माके चिन्तनमें तत्पर रहता था।
वे समस्त कामनाओंका त्याग करके सर्वथा निष्पाप हो गये थे उनमें शम, दम आदि सद्गुणोंका सहज विकास था। काले मृगचर्मकी चादर ओढे, सिरपर जटा बढ़ाये तथा निरन्तर ब्रह्मचर्यका पालन करते हुए वे महर्षिगण सदा परब्रह्म परमात्माका जप एवं कीर्तन करते थे।
सूर्यके समान प्रतापी, धर्मशास्त्रोंका यथार्थ तत्व जाननेवाले वे महात्मा नैमिषारण्यमें तप करते थे। उनमें से कुछ लोग यज्ञोंद्वारा यज्ञपति भगवान् विष्णुका यजन करते थे। कुछ लोग ज्ञानयोगके साधनों द्वारा
ज्ञानस्वरूप श्रीहरिकी उपासना करते थे और कुछ लोग भक्तिके मार्गपर चलते हुए परा-भक्तिके द्वारा भगवान् नारायणकी पूजा करते थे।
एक समय धर्म, अर्थ, काम और मोक्षका उपाय जाननेकी इच्छासे उन श्रेष्ठ महात्माओंने एक बड़ी भारी सभा को उसमें छब्बीस हजार ऊर्ध्वरेता (नैष्ठिक ब्रह्मचर्य का पालन करनेवाले) मुनि सम्मिलित हुए थे उनके शिष्य-प्रशिष्योंकी संख्या तो बतायी ही नहीं जा सकती।
पवित्र अन्तःकरणवाले वे महातेजस्वी महर्षि लोकोंपर अनुग्रह करनेके लिये ही एकत्र हुए थे। उनमें राग और मात्सर्यका सर्वथा अभाव था वे शौनकजीसे T यह पूछना चाहते थे कि इस पृथ्वीपर कौन- कौन से पुण्यक्षेत्र एवं पवित्र तीर्थ हैं। त्रिविध तापसे पीड़ित चित्तवाले मनुष्योंको मुक्ति कैसे प्राप्त हो सकती है।
लोगोंको भगवान् विष्णुकी अविचल भक्ति कैसे प्राप्त होगी तथा सात्त्विक, राजस और तामस भेदसे तीन प्रकारके कर्मोंका फल किसके द्वारा प्राप्त होता है उन मुनियोंको अपनेसे इस प्रकार प्रश्न करनेके लिये उद्यत देखकर उत्तम बुद्धिवाले शौनकजी विनयसे झुक गये और हाथ जोड़कर बोले।
शौनकजीने कहा- महर्षियो। पवित्र सिद्धाश्रम- तीर्थमें पौराणिकोंमें श्रेष्ठ सूतजी रहते हैं। वे वहाँ अनेक प्रकारके यज्ञोंद्वारा विश्वरूप भगवान् विष्णुका यजन किया करते हैं।
महामुनि सूतजी व्यासजीके शिष्य है। वे यह सब विषय अच्छी तरह जानते है। उनका नाम रोमहर्षण है। वे बड़े शान्त स्वभाव के हैं और पुराणसंहिताके वक्ता है।
भगवान् मधुसूदन प्रत्येक युगमें धर्मोका हास देखकर वेदव्यास-रूपसे प्रकट होते और एक ही के अनेक विभाग करते हैं। विप्रगण हमने शास्त्रोंमें यह सुना है कि वेदव्यास मुनि साक्षात् भगवान् नारायण ही हैं उन्हीं भगवान् व्यासने सूतजीको पुराणोंका उपदेश दिया है।
परम बुद्धिमान् वेदव्यासजीके द्वारा भलीभाँति उपदेश पाकर सूतजी सब धर्मकि ज्ञाता हो गये हैं। संसारमें उनसे बढ़कर दूसरा कोई पुराणोंका ज्ञाता नहीं है; क्योंकि इस लोकमें सूतजी ही पुराणोंकि तात्त्विक अर्थको जाननेवाले, सर्वज्ञ और बुद्धिमान् हैं। उनका स्वभाव शान्त है।
वे मोक्षधर्मके ज्ञाता तो हैं ही, कर्म और भक्तिके विविध साधनोंकी भी जानते हैं। मुनीश्वरो वेद, वेदाङ्ग और शास्त्रोंका जो सारभूत तत्त्व है, वह सब मुनिवर व्यासने जगत्के हितके लिये पुराणोंमें बता दिया है और ज्ञानसागर सूतजी उन सबका यथार्थ तत्त्व जानने में कुशल हैं, इसलिये हमलोग उन्हीं सब बातें पूछें।
इस प्रकार शौनकजीने मुनियोंसे जब अपना अभिप्राय निवेदन किया, तब वे सब महर्षि विद्वानोंमें श्रेष्ठ शौनकजीको आलिङ्गन करके बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें साधुवाद देने लगे।
तदनन्तर सब मुनि वनके भीतर पवित्र सिद्धाश्रमतीर्थमें गये और वहाँ उन्होंने देखा कि सूतजी अग्रिष्टोम यज्ञके द्वारा अनन्त अपराजित भगवान् नारायणका यजन कर रहे हैं।
सूतजीने उन विख्यात तेजस्वी महात्माओंका यथोचित स्वागत-सत्कार किया। तत्पश्चात् उनसे नैमिषारण्यनिवासी मुनियोंने इस प्रकार पूछा- ऋषि बोले- उत्तम व्रतका पालन करनेवाले सूतजी हम आपके यहाँ अतिथिरूपमें आये हैं, अतः आपसे आतिथ्य सत्कार पानेके अधिकारी हैं।
आप ज्ञान दानरूपी पूजन सामग्रीके द्वारा हमारा पूजन कीजिये। मुने! देवतालोग चन्द्रमाकी किरणोंसे निकला हुआ अमृत पीकर जीवन धारण करते हैं; परंतु इस पृथ्वीके देवता ब्राह्मण आपके मुखसे निकले हुए ज्ञानरूपी अमृतको पीकर तृप्त होते हैं।
तात! हम यह जानना चाहते हैं कि यह सम्पूर्ण जगत् किससे उत्पन्न हुआ ? इसका आधार और स्वरूप क्या है? यह किसमें स्थित है और किसमें इसका लय होगा ? भगवान् विष्णु किस साधनसे प्रसन्न होते हैं? मनुष्योंद्वारा उनकी पूजा कैसे की जाती है?
भिन्न-भिन्न वर्णों और आश्रमोंका आचार क्या है। अतिथिको पूजा कैसे की जाती है, जिससे सब कर्म सफल हो जाते हैं? वह मोक्षका उपाय मनुष्योंको कैसे सुलभ है, पुरुषोंको भक्तिसे कौन सा फल प्राप्त होता है और भक्तिका स्वरूप क्या है ? मुनिश्रेष्ठ सूतजी !
ये सब बातें आप हमें इस प्रकार समझाकर बतायें कि फिर इनके विषयमें कोई संदेह न रह जाय, आपके अमृतके समान वचनोंको सुननेके लिये किसके मनमें श्रद्धा नहीं होगी ?
सूतजीने कहा— महर्षियो! आप सब लोग सुनें आपलोगोंको जो अभीष्ट है, वह मैं बतलाता हूँ। सनकादि मुनीश्वरोंने महात्मा नारदजीसे जिसका वर्णन किया था, वह नारदपुराण आप सुनें। यह वेदार्थसे परिपूर्ण है- इसमें वेदके सिद्धान्तों का ही प्रतिपादन किया गया है।
यह समस्त पापोंकी शान्ति तथा दुष्ट ग्रहोंकी बाधाका निवारण करनेवाला है। दुःस्वप्नोंका नाश करनेवाला, धर्मसम्मत तथा भोग एवं मोक्षको देनेवाला है। इसमें भगवान् नारायणकी पवित्र कथाका वर्णन है। यह नारदपुराण सब प्रकारके कल्याणकी प्राप्तिका हेतु है।
धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्षका भी कारण है। इसके द्वारा महान् फलोंकी भी प्राप्ति होती है, यह अपूर्व पुण्यफल प्रदान करनेवाला है। आप सब लोग एकाग्रचित्त होकर इस महापुराणको सुनें ।
महापातकों तथा उपपातकोंसे युक्त मनुष्य भी महर्षि व्यासप्रोक्त इस दिव्य पुराणका श्रवण करके शुद्धिको प्राप्त होते हैं। इसके एक अध्यायका पाठ करनेसे अश्वमेध यज्ञका और दो अध्यायोंके पाठसे राजसूय यज्ञका फल मिलता है।