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गुनाहों का देवता एक हिंदी उपन्यास है जो धर्मवीर भारती द्वारा लिखा गया था। यह पहली बार 1949 में प्रकाशित हुआ था। उपन्यास प्रेम के अव्यक्त और अलौकिक रूप का चित्रण करता है।
उपन्यास की कहानी चंदर, सुधा और पम्मी नाम के तीन लोगों के इर्द-गिर्द घूमती है। चंदर एक भावुक और चंचल युवक है, जो सुधा से प्यार करता है। सुधा एक सुंदर और भद्र युवती है, जो चंदर के प्यार को स्वीकार नहीं करती है। पम्मी एक ग्लैमरस और आत्म-केंद्रित युवती है, जो चंदर को आकर्षित करती है।
चंदर के प्रेम को लेकर द्वंद्व पूरे उपन्यास में हावी है। वह सुधा से प्यार करता है, लेकिन वह उसे पाने में असमर्थ है। वह पम्मी के साथ एक रिश्ते में भी पड़ जाता है, लेकिन वह उससे भी प्यार नहीं कर पाता है। अंत में, चंदर और सुधा एक-दूसरे से दूर हो जाते हैं, और वे दोनों अपने पूरे जीवन में दर्द भोगते हैं।
गुनाहों का देवता एक दुखद प्रेम कहानी है जो भारतीय समाज में प्रेम और विवाह की जटिलताओं को उजागर करती है। यह उपन्यास आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कि जब इसे पहली बार लिखा गया था।
Gunaho Ka Devta Book PDF in Hindi ( गुनाहों का देवता फुल स्टोरी pdf इन हिंदी ) के बारे में अधिक जानकारी:-
Name of Book | Gunaho Ka Devta Hindi Book PDF | गुनाहों का देवता फुल स्टोरी PDF |
Name of Author | Dharamveer Bharati |
Language of Book | Hindi |
Total pages in Ebook) | 86 |
Size of Book) | 1 MB |
Category | Novel |
Source/Credits | archive.org |
पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-
अगर पुराने जमाने की नगर देवता की और ग्राम देवता की कल्पनाएँ आज भी मान्य होतो तो में कहता कि इलाहाबाद का नगर देवता जरूर कोई रोमॅण्टिक कलाकार है। ऐसा लगता है कि इस शहर की बनावट, गठन, जिन्दगी और रहन-सहन में कोई वधे-बंधाये नियम नहीं कही कोई कसाव नहीं, हर जगह एक स्वच्छन्द खुलाब, एक बिखरी हुई-सी अनिय मितता बनारस की गलियो से भी पतली गलियाँ और लखनऊ की को भी चोटी सटकें ।
यार्कशायर और ब्राइटन के उपनगरी का मुकावला करने वाली सिविल लाइन्स और दलदलों की गन्दगी को मात करने वाले मुहल्ले । मौसम में भी कही कोई सम नही, कोई सन्तुलन नहीं।
सुबहें मलयजी, दोपहरें अगारा, तो शामें रेशमी धरती ऐसी कि सहारा के रेगिस्तान की तरह बालू भी मिले, मालवा की तरह हरे- भरे खेत भी मिलें और ऊसर और परती की भी कमी नहीं। सचमुच लगता है कि प्रयाग का नगर देवता स्वर्ग-कुजो से निर्वासित कोई मनमोजी कलाकार है जिस के सृजन में हर रंग के ढोरे हैं।
और चाहे जो हो, मगर इधर क्वार, कातिक तथा उधर वसन्त के वाद और होली के बीच के मौसम से इलाहाबाद का वातावरण नैस्टशियम और पंजी के फूलो से भी ज्यादा खूबसूरत और आम के बौरो की ‘खुशबू से भी ज्यादा महकदार होता है। सिविल लाइन्स हो या अल्फ्रेड पार्क, गंगातट हो या सुरूवाग, लगता है कि हवा एक नटखट दोशीजा की तरह कलियों के अचल और लहरों के मिजाज से छेडखानी करती चलती है और नगर आप सर्दी से बहुत नहीं डरते तो जरा एक ओवरकोट
डाल कर सुबह-सुबह घूमने निकल जाये तो इन खुली हुई जगहो की फिज इठलाकर आप को अपने जादू में बाँध लेगी। खास तौर से पो फटने के पहले तो आप को एक बिलकुल नयी अनुभूति होगी। वसन्त के नये-नये मौसमी फूलो के रंग से मुकाबला करनेवाली हलकी सुनहली, बाल-सूर्य की अंगुलियाँ सुबह की राजकुमारी के गुलाबी वक्ष पर बिगरे हुए भोराले गेसुओ को धीरे-धीरे हटाती जाती है और क्षितिज पर सुनहली तस्नाई बिखर पडती है ।
एक ऐसी ही खुशनुमा सुबह थी, और जिस की कहानी में कहने जा रहा हूँ, वह सुबह से भी ज्यादा मासूम युवक, प्रभाती गाकर फूलों को जगाने वाले देवदूत की तरह अल्फ्रेड पार्क के लान पर फूलो की सरजमी के किनारे-किनारे घूम रहा था।
कत्यई स्वीटपी के रंग का पश्मीने का लम्बा कोट, जिस का एक कालर उठा हुआ था और दूसरे कालर में सरो की एक पत्ती वटन होल में लगी हुई थी, सफेद मक्रान जीन का पतला पेण्ट और पैरो में सफेद पारी की पेशावरी सैण्डिले भरा हुआ गोरा चेहरा और ऊंच चमकते हुए माथे पर मूलती हुई एक सी भूरी लट | चलते चलते उस ने एक रंग-विरमा गुच्छा इकट्ठा कर लिया था और रह-रह कर वह उसे सूंघ लेता था ।