गोरक्षसंहिता पुस्तक हिंदी PDF | Goraksha Samhita PDF in Hindi
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गोरक्षसंहिता का संक्षिप्त परिचय
यह गोरक्षसंहिता शतसाहस्री (जिसमें लाखों श्लोक हैं) कही जाती है। किंतु हमें इसके दो ही खंड, वह भी खंडित अवस्था में, उपलब्ध हुए हैं। एक अन्य खंड, जो योग से संबंधित है, नेपाल के दरबार पुस्तकालय में पाया गया था। इसे श्री प्रसन्नकुमार बंध्योपाध्याय ने बांग्ला अनुवाद के साथ 1897 ईस्वी में प्रकाशित किया।
हालांकि इस खंड के विषय महत्वपूर्ण हैं, लेकिन कई श्लोक अन्य गोरक्षनाथकृत ग्रंथों में भी मिलते हैं, जैसे कि हठयोगप्रदीपिका, अकुलबीर तंत्र आदि। इसलिए इस पूर्व प्रकाशित संस्करण को हमने शामिल नहीं किया है।
दो खंडों के विषय अत्यंत गूढ़ और रहस्यमय हैं। फिर भी, भाषाई दृष्टि से यह गोरक्षनाथ द्वारा लिखे गए अन्य ग्रंथों की तुलना में थोड़ा कमजोर प्रतीत होता है। इस कारण यह संदेह होता है कि इसे स्वयं गोरक्षनाथ ने लिखा है। संभवतः यह उनके द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों को बाद में उनके शिष्यों द्वारा संकलित किया गया हो।
गोरक्षसंहिता के पाँच खंड बताए गए हैं, जैसा कि ग्रंथ में उल्लेख मिलता है:
“पंचखंडमिदं शास्त्रं नाम संज्ञा पृथक् पृथक्। सुरूपदेशान्जानीयात् सत्यं सत्यं न संशयः।।”
हालांकि, इन पाँच खंडों के नाम स्पष्ट रूप से वर्णित नहीं हैं। गोरक्षनाथ द्वारा प्रतिपादित राजयोग और अन्य योग-मार्ग जैसे कौलिक और कापालिक सिद्धांत विस्तृत रूप से समझाए गए हैं।
इसके अलावा, यह उल्लेखनीय है कि गोरक्षनाथ के गुरु मत्स्येन्द्रनाथ ने ‘कामरूप’ में योगिनियों का नियंत्रण करने के लिए ‘कौल’ मत का प्रचार किया था। गोरक्षनाथ ने अपने गुरु की शिक्षाओं से इस मत को समझा और इसका विश्लेषण किया। इसलिए, गोरक्षसंहिता में काक्षी-प्रकरण संभवतः इसी से संबंधित हो सकता है।
गोरक्षनाथ और उनकी परंपरा
भारतवर्ष में गोरक्षनाथ, जो सिद्ध और अवधूत के रूप में जाने जाते हैं, का नाम बड़े आदर के साथ स्मरण किया जाता है और किया जाएगा। उनकी सिद्धि की कथाएँ गांव-गांव और हर व्यक्ति के बीच प्रसिद्ध हैं। उस समय के राजा और उनके राज्य गोरक्षनाथ के शिष्यत्व को स्वीकार करते थे, जिससे उनके प्रभाव का अनुमान लगाया जा सकता है।
मातृहरि, जो उनके शिष्य बने, ने वैराग्य परंपरा की शुरुआत की। बंगाल के राजा गोपीचंद्र और उनकी माता ने भी गोरक्षनाथ को सम्मान दिया। इस प्रकार, गोरक्षनाथ के सिद्ध परंपरा का प्रभाव 11वीं शताब्दी से 15वीं शताब्दी तक रहा।
धीरे-धीरे, उनके द्वारा सिखाए गए षट्कर्म से जनमानस असंतुष्ट होकर भक्ति मार्ग की ओर मुड़ गए। यह प्रसिद्ध था कि रसायन विद्या और हठयोग साधना के माध्यम से अमरत्व प्राप्त किया जा सकता है।
गोरक्षनाथ के गुरु मत्स्येन्द्रनाथ के बारे में कहा जाता है कि वे पहले बौद्ध साधक थे, लेकिन बाद में उन्होंने तांत्रिक साधना को अपनाया। बौद्ध धर्म के कालचक्रयान में शैव और शाक्त तंत्रों का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा गया है।
नेपाल में गोरक्षनाथ का प्रभाव इतना अधिक था कि वहां ‘गोरख’ नामक स्थान प्रसिद्ध हुआ। नेपाल और तिब्बत के बीच सांस्कृतिक संबंधों में गोरक्षनाथ का योगदान उल्लेखनीय है।
सिद्ध परंपरा का प्राचीनतम इतिहास मत्स्येन्द्रनाथ से शुरू होता है, जिन्हें बौद्ध धर्म और तंत्र परंपरा में उच्च स्थान प्राप्त था। गोरक्षनाथ के सिद्धांतों को हठयोग और तांत्रिक साधना में महत्वपूर्ण माना गया है।
गोरक्षसंहिता में, जो उनके सिद्धांतों का संग्रह है, मंत्रजप और साधना के विस्तृत विवरण मिलते हैं। इसमें यह भी कहा गया है कि तंत्र के सिद्धांत केवल योग्य व्यक्तियों को ही दिए जा सकते हैं।
आधुनिक समय में भी गोरक्षनाथ की परंपरा के ग्रंथ जैसे ‘सिद्धसिद्धांतसंग्रह’ और ‘गोरक्षसिद्धांतसंग्रह’ प्रकाशित किए गए हैं। गोरक्षसंहिता का यह तीसरा संस्करण, जो उनकी परंपरा पर आधारित है, अध्ययन और अनुसंधान के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। यह सिद्ध परंपरा के कई अज्ञात सिद्धांतों को उजागर करने का प्रयास करता है।
गोरक्ष संहिता का “भूति प्रकरण”
गोरक्ष संहिता एक प्रसिद्ध रचना है जिसमें विभिन्न प्रकरणों का उल्लेख किया गया है। हालांकि प्रयासों के बावजूद केवल दो प्रकरण ही प्राप्त हो सके—पहला कादि प्रकरण और दूसरा भूति प्रकरण। यह प्रकरण मुख्य रूप से रसशास्त्र और उसके विभिन्न प्रयोगों पर केंद्रित है। इसमें नौ अध्याय (पटल) शामिल हैं, जो विभिन्न विषयों पर चर्चा करते हैं:
- रसकर्म की महिमा:
- रसशास्त्र के महत्व और उसके द्वारा प्राप्त होने वाले लाभों का वर्णन किया गया है।
- इसमें अमरत्व, अणिमा सिद्धि, और रोग नाश जैसे गुणों का उल्लेख है।
- परिभाषा पटल:
- इसमें रसायनों, उनके उपयोग, और उनकी विशेषताओं का वर्णन किया गया है।
- साथ ही, रसायनों और धातुओं के शोधन की प्रक्रिया का विवरण है।
- संस्कार पटल:
- रस और धातुओं के शोधन और प्रयोग योग्य बनाने की 18 प्रक्रियाओं का वर्णन किया गया है।
- इसमें सोना और चांदी बनाने की विधियों का भी उल्लेख है।
- रस बंधन प्रक्रिया:
- रस बंधन की प्रक्रिया और उससे संबंधित विभिन्न विधियों को बताया गया है।
- इसमें धातुओं को परिष्कृत करने और उनसे श्रेष्ठ गुण प्राप्त करने की तकनीकों का विवरण दिया गया है।
- लवणों और धातुओं का उपयोग:
- विभिन्न लवणों और धातुओं को रस विज्ञान में कैसे प्रयोग किया जाए, यह बताया गया है।
- औषधियों के उपयोग से रस और धातु का परिष्करण और गुण वृद्धि का वर्णन है।
- सूर्यकांत मणि और अन्य रसायन:
- मणियों और उनके उपयोग से संबंधित प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है।
- इसमें स्वर्ण निर्माण और जीवन शक्ति बढ़ाने की विधियां दी गई हैं।
- औषधियों और दिव्य गुणों का वर्णन:
- विशेष औषधियों के नाम, उनके गुण, और उनसे प्राप्त लाभों का वर्णन है।
- सोमलता और अन्य दिव्य औषधियों का विस्तृत वर्णन किया गया है।
- अयस्कांत (चुंबक) का उपयोग:
- अयस्कांत की विशेषताएं और रस विज्ञान में इसके उपयोग की विधियों का उल्लेख है।
- इसके माध्यम से दीर्घायु और रोगों से मुक्ति के उपाय बताए गए हैं।
- मंत्र, विधि, और नियम:
- अंत में, रसायनों और औषधियों के उपयोग में मंत्रों और नियमों का महत्व बताया गया है।
- पथ्य और अपथ्य का विचार करते हुए रसायन सेवन की प्रक्रिया दी गई है।
गोरक्षसंहिता पुस्तक हिंदी पीडीऍफ़ ( Goraksha Samhita PDF Hindi Book) के बारे में अधिक जानकारी:-
Name of Book | गोरक्षसंहिता पुस्तक हिंदी PDF / Goraksha Samhita PDF in Hindi |
Name of Author | Janardana Pandeya |
Language of Book | Hindi |
Total pages in Ebook) | 477 |
Size of Book) | 485 MB |
Category | आयुर्वेद / Ayurveda, स्वास्थ्य / Health |
Source/Credits | archive.org |
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