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एक्यूप्रेशर चिकित्सा एक पुस्तक है जिसमें हमें यह ज्ञात होता है कि हमारे पूर्वज ऋषि-मुनि और गृहस्व लोग इस विशेष विज्ञान का सदुपयोग करते थे, लेकिन विज्ञान की अवगति और भारतीय संस्कृति के लिए अहम ज्ञान के कारण हम उसे भूल गए हैं। यह पुस्तक हमें उन प्राचीन ज्ञान की महत्वपूर्ण बातें दिखाती है जिनके माध्यम से हम अपने स्वास्थ्य की देखभाल कर सकते हैं।
इस पुस्तक में हमें यह जानकारी मिलती है कि एक्युप्रेशर उपचार पद्धति प्राकृतिक तत्वों पर आधारित है, जिसका उपयोग शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल के लिए किया जा सकता है। हमारे पूर्वजों ने इस विज्ञान का प्रयोग किया था और सद्गुरु सुश्रुत ने भी इसके उल्लेख किए हैं, इसके अलावा यह पुस्तक हमें बताती है कि 3000 वर्ष पहले भारत में यह विज्ञान प्रचलित था।
यह एक सरल, अहिंसात्मक और मुफ्त पद्धति है जिसका अध्ययन करके हम अपने स्वास्थ्य को सुरक्षित रख सकते हैं। इसके माध्यम से हम शरीर के संरचना और क्रियाओं को समझ सकते हैं और उन्हें स्वतंत्रता से संचालित कर सकते हैं। यह चिकित्सा पद्धति हमें योग्यता, आत्म-सहायता और स्वयं चिकित्सा की शक्ति प्रदान करती है।
इस पुस्तक का एक महत्वपूर्ण फायदा यह है कि यह हमें आयुर्वेदिक और प्राकृतिक उपचार विधियों के बारे में भी जानकारी प्रदान करती है। हम इसके माध्यम से अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सुधार सकते हैं और एक स्वस्थ जीवनशैली की दिशा में प्रगति कर सकते हैं।
एक्यूप्रेशर चिकित्सा एक प्रमुख गाइड है जो हमें हमारे पूर्वजों के महत्वपूर्ण ज्ञान के प्रति जागरूक करती है। इस पुस्तक का अध्ययन करके हम एक स्वस्थ और सुखी जीवन जीने की कला को सीख सकते हैं।”
Acupressure PDF in Hindi ( एक्यूप्रेशर चिकित्सा इन हिंदी ) के बारे में अधिक जानकारी:-
Name of Book | Acupressure Book PDF / एक्यूप्रेशर चिकित्सा PDF |
Name of Author | Anonymous |
Language of Book | Hindi |
Total pages in Ebook) | 132 |
Size of Book) | 75 MB |
Category | Health |
Source/Credits | archive.org |
पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-
महान चितक एवं लेखक डाक्टर जॉनसन ने कहा है “To preserve health is a moral and religious duty, for health is the basis of all social virtues–we can no longer be useful when not wel अर्थात स्वास्थ्य को बनाए रखना एक नैतिक एवं धार्मिक कर्तव्य है क्योंकि स्वास्थ्य ही सब सामाजिक सद्गुणों का आधार है रोग की हम नहीं रह पाते।
इसी आशय की संस्कृत में भी एक प्रसिद्ध है- “शरीराम खलु धर्मसाधनम् । अतः स्वास्थ्य को बनाये रखना जहाँ व्यक्ति के निजी तथा पारिवारिक हित में है यहाँ समाज तथा देश के लिए भी लाभकारी है।
कोई भी व्यक्ति अस्वस्थ नहीं रहना चाहता पर सोचने की बात यह है कि मनुष्य रोगी क्यों होता है? रोग होने के दो प्रमुख कारण है पहली अवस्था ने मनुष्य अपनी लापरवाही गलत रहन सहन, अस्वच्छता हानिकारक पदार्थों का सेवन, चिंता, मानसिक तनाव तथा व्यायानहीनता के कारण रोगी होता है।
दूसरी अवस्था ने व्यक्ति अपनी लापरवाही के कारण नहीं अपितु दूषित वातावरण आदि लगने आने तथा कुछ पैतृक त्रुटियों के कारण रोगी होता है जो मूल से उसकी अपनी समता से बाहर होते हैं। शरीर को प्रत्येक आयु में और प्रत्येक परिस्थिति में पूर्णरूप से निरोग रखना कठिन कार्य है क्योंकि शरीर तो रोगों का घर है शरीर व्याधि मंदिर रोग की अवस्था में किसी न किसी चिकित्सा पद्धति का लेना पड़ता है।
जब से मनुष्यता का सभ्य समाज के रूप में विकास हुआ है तब से ही चिकित्सक लगातार इस कोशिश में है कि अधिक चिकत्सा पद्धतियों तथा औषधियों की खोज की जाए ताकि मनुष्य निरोग और अगर रोगग्रस्त हो भी जाए तो शीघ्र स्वस्थ हो सके।