Garbh Geeta PDF in Hindi | संपूर्ण गर्भ गीता

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Garbh Geeta PDF: संपूर्ण गर्भ गीता डाउनलोड करें

Garbh Geeta PDF एक महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथ है, जो गर्भधारण से संबंधित गूढ़ और गहन विचारों को प्रस्तुत करता है। यह ग्रंथ श्रीमद्भगवद गीता के महत्वपूर्ण अंशों का सरल और सारगर्भित संस्करण है। गर्भ गीता का अध्ययन किसी भी आयु के व्यक्ति के लिए उपयोगी है, लेकिन विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं और उनके परिवारों के लिए इसे बेहद लाभकारी माना जाता है। आइए इस लेख में हम समझते हैं कि गर्भ गीता का महत्व क्या है और आप इसे PDF रूप में कैसे डाउनलोड कर सकते हैं।

गर्भ गीता का महत्व

गर्भ गीता का मूल उद्देश्य यह है कि आत्मा के पुनर्जन्म और कर्मों के फल के आधार पर मिलने वाली सुख-दुख की व्याख्या करना। यह ग्रंथ हमें यह समझाता है कि हम अपने कर्मों के अनुसार विभिन्न योनियों में जन्म लेते हैं। गर्भ गीता का पाठ मोक्ष प्राप्ति का मार्ग दिखाता है और हमें भव बंधन से मुक्त करता है। इस ग्रंथ में यह भी बताया गया है कि कैसे एक मां अपने गर्भ में पल रहे बच्चे को संस्कार दे सकती है और कैसे यह समाज और परिवार के सुधार में मदद करता है।

गर्भ गीता के प्रमुख विषय

  • आत्मा और पुनर्जन्म: गर्भ गीता के शुरू में आत्मा के पुनर्जन्म के सवाल का उत्तर दिया गया है, जो यह समझाता है कि आत्मा को बार-बार जन्म क्यों लेना पड़ता है।
  • कर्म और फल: इसमें बताया गया है कि हमारे जीवन में अच्छे और बुरे कर्म किस प्रकार से हमें सुख और दुख प्रदान करते हैं।
  • मोक्ष और मुक्ति: गर्भ गीता यह सिखाती है कि किस प्रकार आत्मा भगवान में लीन हो जाती है और जन्म-मरण के दुखों से मुक्त हो जाती है।

गर्भ गीता का पाठ करने के लाभ

  1. गर्भवती महिलाओं के लिए विशेष लाभ: यह माना जाता है कि गर्भवती महिलाएं यदि गर्भ गीता का नियमित पाठ करती हैं तो उनके गर्भ में पल रहे शिशु पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। शिशु में अच्छे संस्कार विकसित होते हैं और उनका मानसिक व शारीरिक विकास बेहतर होता है।
  2. मन की शांति: गर्भ गीता का नियमित पाठ करने से मन को शांति मिलती है। यह ग्रंथ व्यक्ति को मोह, माया और सांसारिक दुःखों से मुक्ति दिलाने का मार्ग दिखाता है।
  3. ध्यान और भक्ति के लिए प्रेरणा: गर्भ गीता का अध्ययन व्यक्ति को ध्यान और भक्ति में लीन होने के लिए प्रेरित करता है। यह भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अनुग्रह प्राप्त करने का एक प्रभावी माध्यम है।

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गर्भ गीता का सांस्कृतिक और सामाजिक संदर्भ

गर्भ गीता का महत्व केवल धार्मिक ग्रंथ तक सीमित नहीं है। इसका प्रभाव हमारे समाज और परिवार पर भी पड़ता है। यह ग्रंथ स्त्रियों के जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, क्योंकि इसमें यह बताया गया है कि मां बनने की प्रक्रिया केवल शारीरिक नहीं है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक अनुभव भी है। गर्भधारण के समय पढ़े गए संस्कार गर्भ में पल रहे शिशु के जीवन पर स्थायी प्रभाव छोड़ते हैं।

इसके अलावा, गर्भ गीता में परिवार और समाज के सदस्यों का भी उल्लेख किया गया है, जिसमें यह बताया गया है कि वृद्धों, बच्चों और महिलाओं के प्रति कैसा व्यवहार करना चाहिए। यह ग्रंथ व्यक्ति को यह सिखाता है कि परिवार और समाज में सामंजस्य कैसे स्थापित किया जा सकता है।


Garbh Geeta in Hindi | गर्भ गीता पाठ

श्री गर्भगीता

अर्जुन उवाच:
हे भगवन्! कृपया बताएं कि जीव जब गर्भ में आता है तो वह किस पूर्व कर्म के कारण आता है। हे मधुसूदन! प्राणी जन्म के पूर्व गर्भवास का कष्ट भोगता है और जन्म लेते समय भी असह्य कष्ट पाता है। इसके उपरान्त वह संसार में रहकर रोग-पीड़ा भोगता है। उसे बुढ़ापा आता है। प्राणी की मृत्यु भी होती है। अस्तु, प्रभुजी! कृपया यह बताएं कि वे कौन से कर्म हैं जो प्राणी को जन्म-मरण से रहित बनाते हैं।

श्री भगवानुवाच:
हे अर्जुन! जन्म-मरण का बन्धन उन प्राणियों की नियति है जो संसार में लिप्त रहते हैं। ऐसे प्राणी संसार में अनुरक्त रहते हैं अर्थात् संसार के नश्वर पदार्थों से ही प्रेम करते हैं। वे सांसारिक वस्तुओं की कामना करते हैं। प्राणी संसार की माया पाने की चेष्टा तो करता है परन्तु मेरी भक्ति पर ध्यान नहीं देता। इसके कारण वह बारम्बार और अनेक योनियों में जाकर जरा-मरण का दुःख उठाता है।

अर्जुन उवाच:
हे जनार्दन! सांसारिक माया-मोह से मुक्ति तो बहुत कठिन है। माया चित्त हर लेती है। मन काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार रूपी विकार से घिरा मदमस्त हाथी है। तृष्णा रूपी शक्ति इसे प्रेरणा देती है। पंच विकारों में अहंकार प्रबल है जो कि प्राणी को नरक में ले जाता है। हे हृषिकेश! इस मदमस्त हाथी को कैसे वश में किया जाए? मन को भक्ति में लगाने हेतु क्या उपाय करना उचित है?

श्री भगवानुवाच:
हे धनंजय! जैसे मदमस्त हाथी को वश में करने के लिए अंकुश की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार मन को वश में करने के लिए अभ्यास द्वारा ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक होता है। भक्ति और ज्ञान बराबर अभ्यास करते रहने पर ही प्राप्त होते हैं।

अर्जुन उवाच:
हे मधुसूदन! आपकी भक्ति के लिए कोई वनखण्डों में जा रमते हैं और कोई वैरागी बनकर स्थान-स्थान पर भ्रमण करते रहते हैं। हे प्रभु! कृपया बताएं कि आपकी भक्ति कैसे मिल सकती है?

श्री भगवानुवाच:
हे अर्जुन! मेरी खोज में वन-वन भटकते संन्यासी अथवा स्थान-स्थान पर जानेवाले वैरागी मुझे तब तक प्राप्त नहीं कर पाते, जब तक उनके हृदय में मेरा निवास नहीं होता। तप अथवा वैराग्य का अहं मेरी भक्ति पाने में बाधा डालता है। जटा धारण करने अथवा भस्म लगा वैरागी बनने मात्र से जीव मेरी कृपा का पात्र नहीं बन जाता। अहंकारी को तो मेरा दर्शन सुलभ ही नहीं होता। मैं शुद्ध हृदय वाले सतत अभ्यासी ऐसे जीव को मिलता हूँ, जो काम, क्रोध, मोह, ममता और अहंकार से परे है।

अर्जुन उवाच:
हे माधव! प्राणी पंच विकार जनित प्रवृत्ति के कारण लौकिक जीवन नष्ट कर लेता है। हे मुरारी! कृपया बताएं कि वह कौन-सा पाप है जिसके कारण किसी व्यक्ति की स्त्री असमय मर जाती है? किन पापों के फलस्वरूप अल्पायु में पुत्र मर जाता है? कौन से पाप के कारण व्यक्ति वीर्यहीन हो जाता है?

श्री भगवानुवाच:
किसी का लिया हुआ ऋण नहीं चुकाने वाला पति/पत्नी हानि का दुःख उठाता है। उसी प्रकार किसी की धरोहर (अमानत) को न लौटाने वाले का पुत्र अल्प आयु में मर जाता है। किसी को सहयोग, सहायता का आश्वासन देकर भी समय आने पर सहयोग न करने वाला वीर्यहीन होता है। ये सब भयंकर पाप हैं जो स्त्री-पुरुष एकाकी होकर भोगते हैं।

अर्जुन उवाच:
हे दयानिधे! किस पाप के फलस्वरूप प्राणी सतत रोगी रहता है और किस कुकर्म के फलस्वरूप बोझा ढोने वाला जघन्य पशु बनता है?

श्री भगवानुवाच:
हे अर्जुन! कोई सौभाग्य-कांक्षिणी कन्या को बेचने वाला सतत रोगी रहता है। अभक्ष्य भोजन और मादक द्रव्य का सेवन करने वाला अधम योनि में जन्म लेता है। झूठी गवाही देने वाला, भोजन बनाकर ‘पंच कंवल’ कर स्वयं भोजन करने वाला बिल्ली और सूकर की योनि प्राप्त करता है।

अर्जुन उवाच:
हे प्रभु! इस संसार में जिनको आपने धन-धान्य दिया है और उत्तम साधन दिए हैं तो उनका पुण्य क्या था?

श्री भगवानुवाच:
उत्तम रीति से सुयोग्य पात्र को स्वर्णादि दान करने वाला धन-धान्य और वाहन आदि पाता है। सत्य सनातन वैदिक रीति से सुयोग्य वर को विधिपूर्वक कन्या दान करने वाला उत्तम मानव योनि का अधिकारी बनता है।

अर्जुन उवाच:
हे प्रभु! संसार में कोई तो सर्वांग सुंदर है और कोई कुरूप है। सो श्रेष्ठ स्वास्थ्य और स्वरूपवान शरीर किन पुण्यों से मिलता है?

श्री भगवानुवाच:
हे कौन्तेय! पुरुष का रूप-स्वरूप नहीं, गुण महत्त्वपूर्ण है। फिर भी आकर्षक देह संत-विद्वानों की सेवा एवं निरन्तर ज्ञान की आकांक्षा के फलस्वरूप मिलती है।

अर्जुन उवाच:
हे दयानिधि! प्राणी धन और सांसारिक सुखों से मोह क्यों रखता है?

श्री भगवानुवाच:
हे महाबाहु! अगर मेरी कृपा से प्राणी वंचित हो जाए तो धन-दौलत और सांसारिक रूप आदि से प्रीति करने लगता है। यह सब नाशवान है। विवेकी साधक को इससे दूर रहना चाहिए। जो व्यक्ति सांसारिक व्यामोह से मुक्त हो काशी, हरिद्वार, अवन्तिका, अयोध्या आदि पवित्र स्थलों के दर्शन और मेरी निष्काम भक्ति करता है, वह राजा जैसी सम्पन्नता और ज्ञान प्राप्त करता है। इसी प्रकार विक्रम भाव से दान (गुप्त) करने वाला, कामना रहित होकर दूसरों की सेवा करने वाला सदा अपनी आवश्यकतानुसार धन पाता है। उसकी काया निरोगी रहती है।

अर्जुन उवाच:
हे प्रभु! प्राणी में रक्त विकार, खण्ड वायु, अंधा अथवा पंगुता का कारण क्या है, बताने की कृपा करें।

श्री भगवानुवाच:
हे धनंजय! मेरी भक्ति से परे माया लिप्त, नशे-व्यसनों में रत रहने वाला, क्रोधी, रक्त विकारी, आलस्य में डूबे दरिद्री, शील-संयम रहित खण्ड वायु जैसे रोगों से ग्रस्त होते हैं। पतिव्रत धर्म का उल्लंघन करने वाली स्त्री और संयम रहित पति में पंगुता व ज्योतिहीनता आती है।

अर्जुन उवाच:
हे जगद्गुरु! कृपा करके गुरुदीक्षा के विषय में भी कुछ बताएं।

श्री भगवानुवाच:
हे कौन्तेय! तुम धन्य हो और धन्य है तुम्हारी माता। तुम्हारा यह प्रश्न संसार के लिए कल्याणकारी है। हे पार्थ! संयमी और इन्द्रियों को वश में करने वाला कोई सिद्ध पुरुष, जो ईश भक्ति और परोपकार में लगा हो, गुरु रूप में धारण करें। अपने गुरु के मार्गदर्शन में मेरी आराधना कर व्यक्ति गुरु कृपा से मेरी भक्ति पाता है। ऐसे गुरु से विमुख प्राणी सप्त ग्राम को मारने का पाप भोगता है। उसका मुख देखना भी पाप है। जैसे मक्षी भांड से सटा गंगाजल अशुद्ध हो जाता है, उसी प्रकार गुरुद्रोही गृहस्थ साधक की साधना निष्फल रहती है। ऐसा व्यक्ति कूकर, सूकर, गर्दभ, काक आदि योनियों को पाता है। वह अजगर के समान आलस्य में डूबा तिरस्कार पाता है। अतः गुरु आज्ञापालक, साधनशील, व्यसन-रहित जीवन व्यतीत करना चाहिए। हे धनंजय! गुरु दीक्षा बिना साधक का उद्धार नहीं होता है। मेरी भक्ति की इच्छा करने वाले को गुरु धारण करना उत्तम है। जैसे नदियों में गंगा, व्रतों में एकादशी और जीवों में मनुष्य तन श्रेष्ठ है, उसी प्रकार साधक की सिद्धियों में गुरु कृपा श्रेष्ठ है। गुरु सेवा का फल अश्वमेध यज्ञ से भी अधिक फलदायी है।
“तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया। उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः।।”

इति श्री गर्भगीता सम्पूर्णम्॥

Garbh Geeta PDF Download (गर्भ गीता पीडीएफ डाउनलोड)

Garbh Geeta PDF आसानी से ऑनलाइन उपलब्ध है और इसे डाउनलोड करना बहुत ही सरल है। आप नीचे दिए गए लिंक से गर्भ गीता का PDF मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं और इसका पाठ कर सकते हैं।

आप नीचे दिए गए लिंक से मुफ्त में Garbh Geeta PDF डाउनलोड कर सकते हैं:

PDF का नामगर्भ गीता
पृष्ठ संख्या20 पृष्ठ
PDF का साइज5 MB
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निष्कर्ष

Garbh Geeta PDF एक अद्वितीय धार्मिक और आध्यात्मिक ग्रंथ है, जो जीवन और मोक्ष की गूढ़ शिक्षा प्रदान करता है। इसका अध्ययन व्यक्ति को केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि मानसिक और भावनात्मक रूप से भी सशक्त बनाता है। यदि आप भी गर्भ गीता का लाभ उठाना चाहते हैं तो इसका PDF अभी डाउनलोड करें और इसका नियमित पाठ करें।

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