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आज मैं बात करने जा रहा हूँ गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “संपूर्ण महाभारत हिंदी में खण्ड 1,2,3,4,5,6” के बारे में।
यह पुस्तक महाभारत की एक संपूर्ण और विश्वसनीय अनुवाद है। इसमें महाभारत के सभी 18 पर्वों का वर्णन है, जिसमें गीता भी शामिल है। पुस्तक को नीलकण्ठी पाठ के आधार पर अनुवादित किया गया है, जो महाभारत का सबसे प्राचीन और प्रामाणिक पाठ माना जाता है।
पुस्तक की भाषा सरल और सुबोध है। इसे पढ़ना आसान है और इसमें कोई जटिल शब्दावली या पारिभाषिक शब्द नहीं हैं। पुस्तक में महाभारत की कहानी को विस्तार से और रोचक तरीके से बताया गया है। इसमें पात्रों के चरित्र चित्रण और घटनाओं का वर्णन बहुत ही सजीव और प्रभावी है।
पुस्तक महाभारत के सभी महत्वपूर्ण पहलुओं को कवर करती है। इसमें महाभारत की कथा, दर्शन, इतिहास, धर्म और संस्कृति का विस्तार से वर्णन किया गया है। पुस्तक को पढ़ने से पाठक को महाभारत के बारे में गहन ज्ञान प्राप्त होता है।
कुल मिलाकर, “संपूर्ण महाभारत हिंदी में खण्ड 1,2,3,4,5,6” एक उत्कृष्ट पुस्तक है। यह सभी भारतीयों के लिए एक पढ़ने योग्य पुस्तक है, चाहे उनकी उम्र या पृष्ठभूमि कुछ भी हो।
Mahabharata Book PDF in Hindi ( संपूर्ण महाभारत इन हिंदी ) के बारे में अधिक जानकारी:-
Name of Book | Mahabharata Book PDF in Hindi | संपूर्ण महाभारत हिंदी में |
Name of Author | Geeta Press |
Language of Book | Hindi |
Total pages in Ebook) | 2256 |
Size of Book) | 75 MB |
Category | Religious |
Source/Credits | archive.org |
पुस्तक के कुछ अंश (Excerpts From the Book) :-
महाभारत आर्य संस्कृति तथा भारतीय सनातनधर्मका एक महान् ग्रन्थ तथा अमूल्य रत्नोंका अपार भण्डार है। भगवान् वेदव्यास स्वयं कहते हैं कि ‘इस महाभारतमें मैंने वेदोंके रहस्य और विस्तार, उपनिषदोंके सम्पूर्ण सार, इतिहास- पुराणोंके उन्मेष और निमेष, चातुर्वर्ण्यके विधान, पुराणोंके आशय ग्रह-नक्षत्र – तारा आदिके परिमाण, न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, दान, पाशुपत ( अन्तर्यामीकी महिमा), तीर्थों, पुण्य देशों, नदियों, पर्वतों, वनों तथा समुद्रोंका भी वर्णन किया गया है।
अतएव महाभारत महाकाव्य है, गूढ़ार्थमय ज्ञान-विज्ञान शास्त्र है, धर्मग्रन्थ है, राजनीतिक दर्शन है, कर्मयोग-दर्शन है, भक्ति-शास्त्र है, अध्यात्म-शास्त्र है, आर्यजातिका इतिहास है और सर्वार्थसाधक तथा सर्वशास्त्रसंग्रह है। सबसे अधिक महत्त्वकी बात तो यह है कि इसमें एक अद्वितीय, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान्, सर्वलोकमहेश्वर, परमयोगेश्वर, अचिन्त्यानन्त गुणगणसम्पन्न, सृष्टि-स्थिति- प्रलयकारी, विचित्र लीलाविहारी, भक्त-भक्तिमान्, भक्त-सर्वस्व, निखिलरसामृतसिन्धु अनन्त प्रेमाधार, प्रेमघनविग्रह, सच्चिदानन्दघन, वासुदेव भगवान् श्रीकृष्णके गुण-गौरवका मधुर गान है। इसकी महिमा अपार है।
औपनिषद ऋषिने भी इतिहास पुराणको पंचम वेद बताकर महाभारतकी सर्वोपरि महत्ता स्वीकार की है।
इस महाभारतके हिन्दीमें कई अनुवाद इससे पहले प्रकाशित हो चुके हैं, परन्तु इस समय मूल संस्कृत तथा हिन्दी अनुवादसहित सम्पूर्ण ग्रन्थ शायद उपलब्ध नहीं है। इसे गीताप्रेसने संवत् १९९९ में प्रकाशित किया था, किन्तु परिस्थिति एवं
साधनोंके अभावमें पाठकोंकी सेवामें नहीं दिया जा सका। भगवत्कृपासे इसे पुनर्मुद्रित करनेका सुअवसर अब प्राप्त हुआ है।
इस महाभारतमें मुख्यतः नीलकण्ठीके अनुसार पाठ लिया गया है। साथ ही दाक्षिणात्य पाठके उपयोगी अंशोंको सम्मिलित किया गया है और इसीके अनुसार बीच-बीच में उसके श्लोक अर्थसहित दे दिये गये हैं पर उन श्लोकोंकी श्लोक संख्या न तो मूलमें दी गयी है, न अर्थमें ही । अध्यायके अन्तमें दाक्षिणात्य पाठके श्लोकोंकी संख्या अलग बताकर उक्त अध्यायकी पूर्ण श्लोक संख्या बता दी गयी है और इसी प्रकार पर्वके अन्तमें लिये हुए दाक्षिणात्य अधिक पाठके श्लोकोंकी संख्या अलग- अलग बताकर उस पर्वकी पूर्ण श्लोक संख्या भी दे दी गयी है। इसके अतिरिक्त महाभारतके पूर्वप्रकाशित अन्यान्य संस्करणों तथा पूनाके संस्करणसे भी पाठ-
निर्णयमें सहायता ली गयी है और अच्छा प्रतीत होनेपर उनके मूलपाठ या पाठान्तरको भी ग्रहण किया गया है। इस संस्करणमें कुल श्लोक संख्या १००२१७ है। इसमें उत्तर भारतीय पाठकी ८६६००, दाक्षिणात्य पाठकी ६५८४ तथा ‘उवाच’ की संख्या ७०३२ है|